नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बीआर गवई ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को बार-बार एक ही दलील दोहराने पर फटकार लगाई। CJI गवई ने कहा कि संसद से पारित वक्फ कानून संवैधानिक है और बिना गंभीर समस्या के कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। यह सुनवाई वक्फ संशोधन के प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित रही, जिसने मुस्लिम पक्ष की उम्मीदों को झटका दिया।
वक्फ संशोधन सुनवाई: सिब्बल की दलीलें और CJI की टिप्पणी
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच सुनवाई कर रही है। कपिल सिब्बल ने दावा किया कि नया कानून वक्फ संपत्तियों को गैर-न्यायिक तरीके से हड़पने की कोशिश है। हालांकि, उनकी दोहराई गई दलीलों पर CJI गवई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने के लिए ठोस सबूत चाहिए।
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: तीन मुख्य मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को तीन प्रमुख मुद्दों तक सीमित किया:
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वक्फ बाय यूजर: उपयोग से घोषित वक्फ संपत्तियों को रद्द करने की शक्ति।
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गैर-मुस्लिम नियुक्ति: वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति।
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सरकारी जमीन की पहचान: कलेक्टर द्वारा वक्फ संपत्ति को सरकारी जमीन घोषित करने का प्रावधान।
केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगले आदेश तक इन प्रावधानों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
केंद्र का पक्ष: वक्फ कानून का बचाव
केंद्र ने 25 अप्रैल को 1,332 पेज का हलफनामा दाखिल कर वक्फ संशोधन अधिनियम का समर्थन किया। सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी है। केंद्र ने याचिकाकर्ताओं की मांग को खारिज करते हुए कहा कि कानून को पूरी तरह रद्द करना अनुचित है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख: मुस्लिम पक्ष को झटका
CJI गवई की टिप्पणी से साफ है कि कोर्ट बिना पुख्ता आधार के संसद के कानून में हस्तक्षेप नहीं करेगा। सिब्बल की दलीलों के बावजूद, याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत मिलने की संभावना कम है। यह सुनवाई वक्फ संशोधन के भविष्य और मुस्लिम समुदाय की चिंताओं पर बड़ा असर डाल सकती है।