नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के 145% टैरिफ के जवाब में चीन ने दुर्लभ मृदा तत्वों (REE) और चुम्बकों पर निर्यात नियंत्रण लागू कर वैश्विक व्यापार युद्ध को और गहरा कर दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, चीन ने अन्य देशों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था शुरू नहीं की, जिससे यिट्रियम और डिस्प्रोसियम जैसे REE के शिपमेंट बंदरगाहों पर अटक गए हैं। ये तत्व जेट इंजन, रक्षा उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए जरूरी हैं।
वैश्विक आपूर्ति पर गहरा प्रभाव
चीन द्वारा 90% वैश्विक REE का उत्पादन और शोधन करने के कारण, इस नियंत्रण से अमेरिका, जापान, वियतनाम और जर्मनी जैसे देशों में आपूर्ति संकट की आशंका है। जापान, जिसने 2010 के चीनी निर्यात प्रतिबंध के बाद भंडार बनाए, को भी लंबे समय तक कमी का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की शोधन तकनीक पर पकड़ के कारण वैकल्पिक आपूर्ति विकसित करना मुश्किल है।
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भारत पर सीमित असर, समुद्री खनन में रुचि
भारत की कम घरेलू REE खपत के कारण प्रभाव सीमित रहेगा। 2023-24 में भारत ने 2,270 टन REE आयात किया, जिसमें 65% चीन से था। IREL लिमिटेड 10,000 टन की शोधन क्षमता रखती है, लेकिन यह चीन के 2 लाख टन से बहुत कम है। भारत ने अंडमान सागर में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स की खोज शुरू की है, ताकि भविष्य में आत्मनिर्भरता बढ़े।
चीन का समुद्री खनन पर विरोध
चीन ने अमेरिका के प्रशांत महासागर में गहरे समुद्र में REE खनन और भंडारण की योजना का विरोध किया है, इसे UN समुद्री कानून का उल्लंघन बताया। ट्रम्प प्रशासन का यह कदम बैटरी और REE पर चीन की निर्भरता कम करने की रणनीति है। भारत भी अंडमान सागर में समान खोज कर रहा है, जो वैश्विक आपूर्ति विवाद में नया आयाम जोड़ सकता है।