नेपाल काठमांडूः नेपाल में बढ़ता विद्रोह और सरकार के खिलाफ आन्दोलन से यह प्रतीत होता है की देश में लोकतान्त्रिक सरकार की कोई जरुरत नही है। जिस तरह से सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है उस हिसाब से यही लग रहा है की जनता अब राजशाही शासन चाहती है।
काठमांडू में बढ़ता तनाव और प्रो-मोनार्की प्रदर्शन
नेपाल की राजधानी काठमांडू में हाल के प्रो-मोनार्की प्रदर्शनों ने देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मार्च 28, 2025 को हुए हिंसक प्रदर्शन, जिसमें दो लोगों की मौत और दर्जनों घायल हुए, ने यह संकेत दिया कि जनता का एक वर्ग 2008 में समाप्त हुई 239 साल पुरानी राजशाही को वापस लाने की मांग कर रहा है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थकों ने इस आंदोलन को हवा दी है। लेकिन क्या वास्तव में नेपाल में राजशाही की वापसी हो सकती है?
राजनीतिक अस्थिरता और जनता का असंतोष
2008 में माओवादी विद्रोह और लोकतांत्रिक आंदोलन के बाद नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना। इसके बाद से देश में 16 साल में 14 सरकारें बदल चुकी हैं, जो राजनीतिक अस्थिरता का स्पष्ट प्रमाण है। आर्थिक विकास में कमी और भ्रष्टाचार के आरोपों ने जनता के बीच असंतोष को बढ़ाया है। हाल के प्रदर्शनों में “राजा आऊ देश बचाऊ” जैसे नारे इस बात का संकेत हैं कि लोग मौजूदा व्यवस्था से ऊब चुके हैं। RPP के नेता स्वाती थापा ने दावा किया है कि 80% से अधिक नेपाली हिंदू राष्ट्र और राजशाही की वापसी चाहते हैं, हालांकि इस दावे का कोई आधिकारिक सर्वेक्षण समर्थन नहीं करता।
राजशाही की वापसी की संभावना: तथ्य और चुनौतियां
राजशाही की बहाली के लिए संवैधानिक संशोधन जरूरी है, जिसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। वर्तमान में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (CPN-UML), नेपाली कांग्रेस और माओवादी सेंटर जैसे प्रमुख दल इसका विरोध करते हैं। 2008 में माओवादियों ने 17,000 लोगों की जान लेने वाले गृहयुद्ध के बाद राजशाही को खत्म किया था, और उनका मानना है कि यह वापसी “असंभव” है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से भारत, नेपाल में स्थिर लोकतंत्र का समर्थन करता है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह, जो अब 77 साल के हैं और एक आम नागरिक के रूप में रहते हैं, ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से समर्थन जुटाने की कोशिश की है, लेकिन उनकी सक्रियता को सरकार ने संदेह की नजर से देखा है। सरकार ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई और पासपोर्ट रद्द करने की योजना भी बनाई है।
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संभावित परिणाम और क्षेत्रीय प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राजशाही समर्थक आंदोलन बढ़ता है, तो नेपाल में और अस्थिरता आ सकती है। यह भारत जैसे पड़ोसी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है, जो नेपाल में स्थिरता और चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है। हालांकि, मौजूदा संवैधानिक ढांचा और राजनीतिक दलों का विरोध राजशाही की वापसी को मुश्किल बनाता है। दूसरी ओर, यदि सरकार जनता के असंतोष को दूर करने में विफल रही, तो यह आंदोलन और ताकत पकड़ सकता है। अभी के लिए, नेपाल की राजनीति एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है, जहां लोकतंत्र और परंपरा के बीच संघर्ष तेज हो रहा है।