कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने मंगलवार को 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया। पनोली को ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े एक सोशल मीडिया वीडियो में कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और वैमनस्य फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब दूसरों की भावनाओं को चोट पहुंचाना नहीं है।
कोर्ट का फैसला और टिप्पणी
न्यायमूर्ति पार्थ सारथी मुखर्जी की अवकाश पीठ ने कहा, “हमारा देश विविधताओं से भरा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप दूसरों को चोट पहुंचाएं।” कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को 5 जून को केस डायरी पेश करने का निर्देश दिया, जब पनोली की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई होगी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि केवल गार्डन रीच पुलिस स्टेशन की FIR पर कार्रवाई होगी, अन्य सभी FIR अगले नोटिस तक स्थगित रहेंगी।
पनोली के वकील का पक्ष
पनोली के वकील ने दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सोशल मीडिया पर भारत-पाकिस्तान यूजर्स के बीच वाकयुद्ध हुआ था। उन्होंने कहा कि 15 मई को दर्ज FIR में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता और पनोली को कोई नोटिस नहीं दिया गया। वकील ने बताया कि आपत्तिजनक पोस्ट 7 मई की रात को डाली गई थी, जिसे 8 मई को हटा लिया गया। पनोली के परिवार ने भी धमकी मिलने की शिकायत दर्ज की थी।
मामला क्या है?
पनोली ने एक वीडियो में बॉलीवुड सितारों, खासकर मुस्लिम अभिनेताओं, की ऑपरेशन सिंदूर पर चुप्पी की आलोचना की थी। इस वीडियो को गार्डन रीच पुलिस स्टेशन में 15 मई को दर्ज शिकायत के आधार पर आपत्तिजनक माना गया। कोलकाता पुलिस ने 30 मई को पनोली को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया। निचली अदालत ने उनकी जमानत खारिज कर 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
राज्य का जवाब
वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने कोर्ट में कहा कि शिकायत में संज्ञेय अपराध बनता है और पोस्ट में आपत्तिजनक वीडियो भी था। इस मामले ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन पर बहस छेड़ दी है।
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