राजस्थान में मेहरात समुदाय पर जबरन इस्लामीकरण: दाह संस्कार, होलिका दहन पर रोक लगा रहे मुस्लिम, हिन्दू बच्चों का जबरन खतना किया जा रहा है

अजमेर: राजस्थान के अजमेर, ब्यावर, पाली, भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों में रहने वाले मेहरात (चीता-मेहरात और काठात) समुदाय के लोगों पर जबरन इस्लामी रीति-रिवाज थोपने और धर्मांतरण के लिए दबाव डालने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि बाहरी मौलवियों के बढ़ते प्रभाव के कारण मस्जिदों और मदरसों का निर्माण तेजी से हो रहा है, हिंदू परंपराओं जैसे होलिका दहन और दाह संस्कार को रोका जा रहा है, और बच्चों का खतना अनिवार्य करने का दबाव बनाया जा रहा है। इस मुद्दे ने सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है, जिसके चलते कई परिवारों को सामाजिक बहिष्कार और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।

मेहरात समुदाय का धार्मिक इतिहास

मेहरात समुदाय, जो OBC वर्ग में आता है, राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्रों में ब्यावर के आसपास बसा है। इस समुदाय के लोग परंपरागत रूप से हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते रहे हैं, लेकिन ऐतिहासिक रूप से कुछ परिवारों ने इस्लाम की कुछ प्रथाओं (जैसे खतना, हलाल भोजन और दफन) को अपनाया था। फिर भी, ये लोग हिंदू त्योहार जैसे होली, दीपावली, रक्षाबंधन और मकर संक्रांति मनाते रहे हैं। उनके नाम भी राम खां, लक्ष्मण खां, सीता, गंगा जैसे हिंदू-मुस्लिम मिश्रित हैं। हालांकि, पिछले दो दशकों में बाहरी मौलवियों की सक्रियता ने समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया है।

दाह संस्कार पर रोक और हिंसा

ब्यावर के सराधना गांव में कालू सिंह ने बताया कि जब उन्होंने अपने पिता का हिंदू रीति-रिवाजों से दाह संस्कार करने की कोशिश की, तो स्थानीय कट्टरपंथियों ने पथराव किया और शव को दफनाने का दबाव डाला। इस घटना के बाद उनके दूध के बूथ का सामाजिक बहिष्कार हुआ, जिसके कारण उन्हें बूथ किराए पर देकर टैंकर चलाना शुरू करना पड़ा। इसी तरह, बाडिया गांव के प्रेम चीता को अपने पिता के दाह संस्कार के लिए पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी। प्रेम ने बताया कि गांव में पहले शवदाह स्थल भी नहीं था, जिसे उन्होंने प्रशासन से आवंटित करवाया।

बच्चों का खतना और सामाजिक बहिष्कार

सुहावा गांव में सज्जन काठात ने बताया कि उनके बेटे का खतना करवाने से इनकार करने पर उन्हें और उनके परिवार को गांव से निकाल दिया गया। उन्हें अपने खेतों तक जाने से रोका गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि 90 के दशक से बाहरी मौलवी गांवों में इस्लामी प्रथाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। सुहावा में जब मौलवियों को रोका गया, तो गांव के ही मोहन को शम्सुद्दीन बनाकर मस्जिद का मौलवी नियुक्त कर दिया गया, जिसने कट्टरपंथ को और बढ़ावा दिया।

मस्जिद-मदरसों का निर्माण और धर्मांतरण

स्थानीय लोगों और राजस्थान चीता मेहरात हिंदू मगरा-मेरवाड़ा महासभा के संरक्षक छोटू सिंह चौहान के अनुसार, बाहरी मौलवी अजमेर, ब्यावर, पाली, राजसमंद और भीलवाड़ा में मस्जिदों और मदरसों का निर्माण करवा रहे हैं। इन संस्थानों के जरिए OBC समुदाय के लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। छोटू सिंह ने बताया कि 800 साल पहले कुछ मेहरात परिवारों ने इस्लामी रीतियों को अपनाया था, लेकिन हिंदू परंपराएं बरकरार थीं। अब बाहरी मौलवियों के प्रभाव से दाढ़ी-टोपी, इस्लामी नाम और मस्जिद जाने का चलन बढ़ रहा है।

पहचान का संकट

ब्यावर के राजियावास गांव के सूरज काठात, जो UPSC की तैयारी कर रहे हैं, ने बताया कि फॉर्म भरते समय उनकी जाति मेहरात दर्ज करने पर धर्म के कॉलम में स्वतः मुस्लिम लिख दिया गया, जबकि वे हिंदू हैं। उन्होंने मांग की कि उनकी हिंदू पहचान को मान्यता दी जाए। यह घटना दर्शाती है कि मेहरात समुदाय की धार्मिक पहचान को जबरन इस्लामीकरण करने की कोशिश हो रही है।

कानूनी और प्रशासनिक कदम

राजस्थान में धर्मांतरण विरोधी कानून को सख्त करने की प्रक्रिया चल रही है। फरवरी 2025 में मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसमें जबरन धर्मांतरण पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। इस कानून के तहत पीड़ित, उनके रिश्तेदार या कोई भी व्यक्ति FIR दर्ज कर सकता है। पुलिस ने ब्यावर और अन्य क्षेत्रों में शिकायतों पर जांच शुरू की है, लेकिन स्थानीय लोग प्रशासन की सुस्ती से नाराज हैं।

News Source: OpIndia

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