नई दिल्ली: 9 मई को IMF की कार्यकारी बोर्ड ने पाकिस्तान को $7 बिलियन के विस्तारित कोष सुविधा (EFF) के तहत $1 बिलियन और $1.3 बिलियन की रेजिलियंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (RSF) की मंजूरी दी। भारत ने इस मतदान में अनुपस्थित रहकर कड़ा विरोध दर्ज किया। भारत सरकार के सूत्रों ने बताया कि IMF नियमों में “ना” वोट का प्रावधान नहीं है, इसलिए अनुपस्थिति (abstain) ही विरोध का सबसे मजबूत तरीका था। भारत ने पाकिस्तान के खराब आर्थिक रिकॉर्ड और ऋण के आतंकवाद में दुरुपयोग की आशंका पर चिंता जताई।
IMF की निर्णय प्रक्रिया
IMF की 25 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड दैनिक कार्यों, जैसे ऋण स्वीकृति, को संभालती है। संयुक्त राष्ट्र के विपरीत, जहां प्रत्येक देश का एक वोट होता है, IMF में वोटिंग शेयर देश की आर्थिक ताकत पर आधारित होते हैं। अमेरिका के पास 16.5% और भारत के पास 2.75% वोटिंग शेयर हैं। निर्णय आमतौर पर आम सहमति से लिए जाते हैं, लेकिन वोटिंग में केवल “हां” या “अनुपस्थित” का विकल्प होता है। भारत ने इस प्रक्रिया का उपयोग अपनी आपत्तियों को दर्ज करने के लिए किया।
भारत की आपत्तियां
भारत ने कहा कि 1989 से 35 वर्षों में पाकिस्तान ने 28 साल तक IMF से ऋण लिया, जिसमें पिछले पांच वर्षों में चार कार्यक्रम शामिल हैं। यह IMF के कार्यक्रम डिज़ाइन, निगरानी या पाकिस्तान के कार्यान्वयन में खामियों को दर्शाता है। भारत ने पाकिस्तानी सेना की आर्थिक मामलों में दखलंदाजी और ISI द्वारा आतंकवाद को समर्थन पर सवाल उठाए, जो पारदर्शिता और सुधारों को बाधित करता है। भारत ने चेतावनी दी कि यह फंडिंग आतंकवाद को बढ़ावा दे सकती है, जिससे IMF की साख को नुकसान हो सकता है।
वैश्विक और राजनीतिक संदर्भ
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत-पाक तनाव चरम पर है। भारत ने 6-7 मई को आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने 15 भारतीय शहरों पर हमले की कोशिश की, जो नाकाम रही। भारत ने IMF से कहा कि पाकिस्तान का आतंकवाद समर्थन फंडिंग की समीक्षा की मांग करता है। अमेरिका और इसराइल ने भारत के रुख का समर्थन किया, जबकि कांग्रेस ने अनुपस्थिति को “कमजोरी” करार दिया।
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