मालेगांव ब्लास्ट केस: साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत सभी 7 आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं’

मुंबई: 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, मुंबई की विशेष NIA कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इनमें पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जांच एजेंसी यह साबित नहीं कर सकी कि धमाके में इनका कोई प्रत्यक्ष योगदान था।

कोर्ट का फैसला और टिप्पणी

विशेष NIA कोर्ट के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर की मोटरसाइकिल (एलएमएल फ्रीडम) के धमाके में उपयोग होने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला। साथ ही, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के घर में RDX होने या उनकी संलिप्तता के कोई पुख्ता सबूत जांच एजेंसी प्रस्तुत नहीं कर सकी। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि कुछ गवाहों ने दबाव में बयान बदले, और 323 गवाहों में से 32 अपने बयानों से मुकर गए।

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा, “हमने एडीजी एटीएस को आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में विस्फोटक रखने के मामले की जांच शुरू करने का निर्देश दिया है।” यह आदेश जांच में संभावित अनियमितताओं की ओर इशारा करता है।

साध्वी प्रज्ञा का बयान: “भगवा और हिंदुत्व की जीत”

फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कोर्ट में भावुक बयान दिया। उन्होंने कहा, “मैंने शुरू से कहा था कि जांच के लिए बुलाने का कोई आधार होना चाहिए। मुझे गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया, और मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया। मैं एक साधु का जीवन जी रही थी, लेकिन मुझे आरोपी बनाया गया। कोई भी स्वेच्छा से हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ। मैं जीवित इसलिए हूँ, क्योंकि मैं एक संन्यासी हूँ। यह साजिश भगवा को बदनाम करने की थी। आज भगवा की जीत हुई है, हिंदुत्व की जीत हुई है। जिन्होंने भारत और भगवा को बदनाम किया, उन्हें भगवान सजा देंगे।”

साध्वी ने यह भी कहा कि इस केस ने उनके 17 साल बर्बाद किए, और यह एक राजनीतिक साजिश थी। उन्होंने कोर्ट के फैसले को हिंदुत्व की जीत करार दिया।

कर्नल पुरोहित: “न्याय में विश्वास बहाल हुआ”

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने कोर्ट में कहा, “मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे उसी दृढ़ विश्वास के साथ अपने देश और संगठन की सेवा करने का मौका दिया, जैसा मैं इस मामले में फंसाए जाने से पहले कर रहा था। जांच एजेंसियाँ गलत नहीं हैं, लेकिन उनके अंदर के कुछ लोग गलत हैं। आपने आम आदमी का व्यवस्था में विश्वास बहाल किया है।”

मालेगांव ब्लास्ट 2008: क्या हुआ था?

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के महीने में रात 9:35 बजे भीकू चौक पर एक मोटरसाइकिल में बम धमाका हुआ था। इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई और 101 लोग घायल हुए। मृतकों में फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह मोहम्मद शाह शामिल थे।

प्रारंभिक जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने की थी, जिसने साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को मुख्य आरोपी बनाया। 23 अक्टूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा, शिवनारायण कालसांगरा और श्याम भावरलाल शाह को गिरफ्तार किया गया। नवंबर 2008 तक 11 लोग गिरफ्तार हुए, और MCOCA (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) लागू किया गया। 2011 में जांच NIA को सौंपी गई।

विवाद और गवाहों का पलटना

NIA ने 2016 में साध्वी प्रज्ञा और तीन अन्य आरोपियों को क्लीन चिट दी थी, लेकिन कोर्ट ने उन्हें मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया। ट्रायल के दौरान 323 गवाहों की गवाही हुई, जिनमें से 32 ने दबाव में बयान बदल दिए। कुछ गवाहों ने कहा कि उनके बयान बंदूक की नोक पर लिए गए थे। बचाव पक्ष ने दावा किया कि यह मामला राजनीति से प्रेरित था और सबूत गढ़े गए।

पीड़ितों के परिजनों की प्रतिक्रिया

फैसले के बाद पीड़ितों के रिश्तेदारों ने निराशा जताई। एक परिजन ने कहा, “17 साल बाद भी इंसाफ नहीं हुआ। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।” यह मामला राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील रहा है, क्योंकि इसमें “हिंदू आतंकवाद” और “भगवा आतंकवाद” जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ, जिसने व्यापक बहस छेड़ी।

यह भी पढ़ें – मेघालय में 4,000 टन कोयला गायब: मंत्री का दावा- बारिश में बहकर बांग्लादेश चला गया

Share in Your Feed

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *