कौशांबी: उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के 103 वर्षीय लखन पुत्र मंगली को 43 साल जेल में बिताने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 मई 2025 को बाइज्जत बरी कर रिहा किया। 1977 में हत्या के आरोप में गिरफ्तार लखन को 1982 में प्रयागराज की निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अपनी बेगुनाही का दावा करते हुए लखन ने उसी साल हाईकोर्ट में अपील दायर की, लेकिन मुकदमा 43 साल तक चला। यह मामला भारत की न्याय व्यवस्था में गरीबों के लिए इंसाफ की पहुंच और देरी की गंभीर समस्या को उजागर करता है।
43 साल का इंतजार
लखन, कौशांबी के गौराए गांव के निवासी, को 6 अगस्त 1977 को गांव में हुए झगड़े में प्रभु सरोज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उनके वकील अंकित मौर्य के अनुसार, अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में विफल रहा, और हाईकोर्ट ने निजी बचाव के अधिकार के तहत लखन को बरी किया। तीन सह-आरोपियों की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई, और चौथा, देशराज, बिस्तर पर पड़ा है। लखन की रिहाई में 18 दिन की अतिरिक्त देरी हुई, क्योंकि रिहाई आदेश समय पर जेल नहीं पहुंचा।
गरीबों के लिए महंगा इंसाफ
लखन का मामला न्याय तक पहुंच की असमानता को रेखांकित करता है। उनकी बेटियों ने वकील नियुक्त करने के लिए संघर्ष किया, और लखन ने स्वीकार किया कि उन्हें अदालती प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं थी। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) की मदद से आखिरकार उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता मिली। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मोहम्मद आकिब ने X पर लिखा, “लखन के अनमोल 50 साल का हर्जाना कौन भरेगा?” भारत में 5 मिलियन से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं, और गरीबों के लिए महंगे वकील और लंबी प्रक्रियाएं इंसाफ को लगभग असंभव बना देती हैं।
न्याय व्यवस्था पर सवाल
लखन की रिहाई को उनकी बेटी आशा ने “43 साल के दाग” का हटना बताया, लेकिन 103 साल की उम्र में रिहाई क्या वास्तव में न्याय है? लखन के पैरों में दर्द रहता है, और वे बिना सहारे चल नहीं सकते। उनकी जवानी और जीवन का बड़ा हिस्सा जेल की सलाखों में बीता। X पर @DastanAfsharAli ने इसे “सिस्टम की हार” करार दिया, जो न्याय की धीमी गति को दर्शाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की लागत गरीबों के लिए असहनीय है।
लखन की कहानी न्याय व्यवस्था में सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।
लखन की कहानी न्याय व्यवस्था में सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। मुफ्त कानूनी सहायता और तेजी से सुनवाई की व्यवस्था को मजबूत करना जरूरी है, ताकि कोई और लखन अपनी जिंदगी जेल में न गंवाए। यह घटना सवाल उठाती है: जब इंसाफ इतनी देर से मिले कि जीवन ही बीत जाए, तो क्या वह इंसाफ है? सरकार और न्यायपालिका को गरीबों के लिए सुलभ और समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करना होगा।
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