नई दिल्ली: केंद्र सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के मॉनसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास से जले हुए कैश की बरामदगी के बाद सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने उन्हें दोषी ठहराया। जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद यह कदम उठाया जा सकता है।
कैश कांड का पूरा मामला
14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगी, जहां दमकलकर्मियों को जले हुए नोटों की गड्डियां मिलीं। उस समय वे दिल्ली हाई कोर्ट में जज थे। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 मार्च को उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट में किया, जहां उन्होंने 5 अप्रैल को शपथ ली, लेकिन कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट में कैश बरामदगी के आरोपों की पुष्टि की।
जांच और सिफारिश
22 मार्च को तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने पंजाब-हरियाणा, हिमाचल, और कर्नाटक हाई कोर्ट के जजों की समिति बनाई। समिति ने दिल्ली पुलिस और अग्निशमन सेवा सहित 50 से अधिक लोगों के बयानों की जांच की। CJI ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगा, लेकिन उन्होंने आरोपों का खंडन करते हुए इनकार कर दिया। 8 मई को CJI ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महाभियोग की सिफारिश भेजी।
महाभियोग की प्रक्रिया
महाभियोग के लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए। प्रस्ताव को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। सरकार विपक्षी दलों से समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है। मॉनसून सत्र, जो जुलाई के तीसरे हफ्ते में शुरू होगा, में यह प्रस्ताव पेश हो सकता है।
जनता और विपक्ष की प्रतिक्रिया
X पर @MediaHarshVT ने इस मामले में पारदर्शिता की मांग की, जबकि @AshokMeghwal_ ने इसे भ्रष्टाचार का मामला बताया। कांग्रेस ने अभी तक औपचारिक रुख नहीं दिखाया है। यदि जस्टिस वर्मा हटाए गए, तो वे भारत में महाभियोग से हटने वाले पहले जज होंगे।
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