मुंबई : ICICI बैंक की पूर्व सीईओ और एमडी चंदा कोचर को एक अपीलीय ट्रिब्यूनल ने वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर करने के बदले 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी पाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 3 जुलाई 2025 को जारी आदेश में ट्रिब्यूनल ने इसे ‘क्विड प्रो क्वो’ (कुछ के बदले कुछ) का स्पष्ट मामला करार दिया। रिश्वत का पैसा चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) के जरिए वीडियोकॉन की कंपनी सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (SEPL) से ट्रांसफर किया गया।
मामले का विवरण
26 अगस्त 2009 को ICICI बैंक की निदेशक समिति, जिसकी अध्यक्षता चंदा कोचर कर रही थीं, ने वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (VIEL) को 300 करोड़ रुपये का टर्म लोन मंजूर किया। लोन 7 सितंबर 2009 को जारी किया गया। अगले ही दिन, वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत ने SEPL के माध्यम से 64 करोड़ रुपये दीपक कोचर की कंपनी NRPL को ट्रांसफर किए। ट्रिब्यूनल ने पाया कि NRPL का कागजी मालिकाना हक धूत के पास था, लेकिन इसका वास्तविक नियंत्रण दीपक कोचर के पास था, जो इसके प्रबंध निदेशक भी थे।
ट्रिब्यूनल का फैसला
3 जुलाई 2025 को अपीलीय ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के दावों को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 50 के तहत दर्ज बयानों से पुष्टि मिली है। ट्रिब्यूनल ने चंदा कोचर पर ICICI बैंक की आंतरिक नीतियों और हितों के टकराव (conflict of interest) नियमों का उल्लंघन करने का आरोप सही ठहराया। आदेश में कहा गया, “64 करोड़ रुपये का लेन-देन लोन मंजूरी के लिए रिश्वत था, जो दीपक कोचर की कंपनी के जरिए हुआ।” ट्रिब्यूनल ने ED द्वारा 78 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त करने के फैसले को भी सही ठहराया।
CBI और ED की जांच
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने 2019 में चंदा कोचर, दीपक कोचर, वेणुगोपाल धूत और संबंधित कंपनियों के खिलाफ आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत FIR दर्ज की थी। CBI ने आरोप लगाया कि 2009 से 2011 के बीच ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3,250 करोड़ रुपये के लोन दिए, जो बैंक नीतियों का उल्लंघन करते थे। इनमें से 1,730 करोड़ रुपये नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) बन गए, जिससे बैंक को भारी नुकसान हुआ। ED ने भी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच शुरू की, जिसमें चंदा कोचर और दीपक कोचर को 2022 में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2023 में उनकी गिरफ्तारी को ‘गैरकानूनी’ करार देते हुए जमानत दे दी थी।
अन्य आरोप: चर्चगेट फ्लैट विवाद
CBI ने यह भी आरोप लगाया कि चंदा कोचर ने 2016 में वीडियोकॉन ग्रुप से चर्चगेट के CCI चैंबर्स में एक फ्लैट मात्र 11 लाख रुपये में हासिल किया, जिसकी कीमत 5.3 करोड़ रुपये थी। यह फ्लैट उनके परिवार के ट्रस्ट को हस्तांतरित किया गया था, जिसका प्रबंधन दीपक कोचर कर रहे थे। 2021 में उनके बेटे ने उसी बिल्डिंग में 19.11 करोड़ रुपये का फ्लैट खरीदा।
चंदा कोचर का करियर और विवाद
63 वर्षीय चंदा कोचर ने 1984 में ICICI बैंक में ट्रेनी के रूप में शुरुआत की और 2009 में CEO और MD बनीं। उनके नेतृत्व में बैंक ने कई पुरस्कार जीते, लेकिन 2018 में एक गुमनाम व्हिसलब्लोअर की शिकायत के बाद यह मामला सामने आया। 2018 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, और 2019 में ICICI बैंक ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। 2022 में CBI ने उन्हें गिरफ्तार किया था।
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