डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 10% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी, भारत भी निशाने पर

वाशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) संगठन के सभी 10 सदस्य देशों, जिसमें भारत प्रमुख रूप से शामिल है, पर 10% अतिरिक्त आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की चेतावनी दी है। ट्रंप ने ब्रिक्स पर अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने और वैश्विक व्यापार में इसकी स्थिति को नष्ट करने का आरोप लगाया है। मंगलवार को व्हाइट हाउस में अपनी अध्यक्षता में आयोजित छठी कैबिनेट बैठक में ट्रंप ने कहा कि ब्रिक्स की “अमेरिका-विरोधी नीतियों” का समर्थन करने वाले किसी भी देश को बिना किसी अपवाद के 10% अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। यह टैरिफ 1 अगस्त 2025 से लागू हो सकता है, जैसा कि अमेरिकी अधिकारियों ने संकेत दिया है।

ट्रंप का बयान और भारत पर प्रभाव

ट्रंप ने विशेष रूप से भारत का जिक्र करते हुए कहा, “अगर भारत ब्रिक्स में है, तो उन्हें 10% टैरिफ देना होगा। ब्रिक्स की स्थापना हमें नुकसान पहुंचाने और हमारे डॉलर को कमजोर करने के लिए की गई थी।” उन्होंने दावा किया कि ब्रिक्स देश “डॉलर को नष्ट करने की कोशिश” कर रहे हैं, हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह इस संगठन को अमेरिका के लिए कोई गंभीर खतरा नहीं मानते। ट्रंप ने ब्रिक्स की नीतियों को “अमेरिका-विरोधी” करार देते हुए कहा कि यह संगठन वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है।

ब्रिक्स संगठन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया शामिल हैं। यह समूह वैश्विक जनसंख्या का लगभग 45% और वैश्विक जीडीपी का 35% (क्रय शक्ति समता के आधार पर) प्रतिनिधित्व करता है। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह जल्द ही सभी संबंधित देशों को पत्र भेजकर टैरिफ दरों और समझौतों की जानकारी देंगे। ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल में घोषित टैरिफ को 9 जुलाई की जगह 1 अगस्त तक लागू करने का निर्णय लिया है, जिससे देशों को व्यापार समझौतों के लिए अतिरिक्त समय मिला है।

ब्रिक्स और डॉलर पर विवाद

ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों द्वारा वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर की प्रभुत्व को कम करने की चर्चाओं के जवाब में आया है। रूस और चीन जैसे देशों ने हाल के वर्षों में वैकल्पिक मुद्रा प्रणाली और SWIFT जैसे वैश्विक बैंकिंग नेटवर्क के विकल्प की वकालत की है, ताकि पश्चिमी प्रतिबंधों से बचा जा सके। उदाहरण के लिए, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अक्टूबर 2024 में ब्रिक्स समिट में डॉलर को “हथियार” के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था और वैकल्पिक भुगतान प्रणाली की मांग की थी। हालांकि, पुतिन ने यह भी कहा था कि नई मुद्रा बनाने का समय अभी नहीं आया है।

इसके बावजूद, विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिक्स के लिए एक नई मुद्रा बनाना या डॉलर को पूरी तरह से हटाना आसान नहीं है। अटलांटिक काउंसिल के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिकी डॉलर वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में अपनी स्थिति में “निकट और मध्यम अवधि में सुरक्षित” है, और यह विश्व की लगभग 58% विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है। ब्रिक्स देशों के बीच आर्थिक और भू-राजनीतिक मतभेद भी एक सामान्य मुद्रा बनाने में बाधा हैं।

भारत की स्थिति

भारत ने पहले स्पष्ट किया है कि वह वैश्विक व्यापार में डॉलर से पूरी तरह हटने का समर्थन नहीं करता, बल्कि व्यापारिक हितों के लिए “वैकल्पिक रास्ते” तलाश रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल ट्रंप की धमकियों के जवाब में कहा था कि भारत डॉलर को हटाने की नीति का समर्थन नहीं करता। फिर भी, भारत के लिए ब्रिक्स महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संगठन ग्लोबल साउथ के लिए एक मंच प्रदान करता है और वैश्विक आर्थिक शासन में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देता है। भारत और अमेरिका के बीच 2022 में 191.8 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, जिससे भारत अमेरिका का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है।

वैश्विक प्रतिक्रिया

ब्रिक्स देशों ने ट्रंप की टैरिफ नीतियों की आलोचना की है। रियो डी जनेरियो में 6-7 जुलाई को हुए 17वें ब्रिक्स समिट में, सदस्य देशों ने एक संयुक्त बयान में टैरिफ को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बताया और कहा कि यह “अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता” पैदा करता है। चीन के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की धमकी का जवाब देते हुए कहा कि वह टैरिफ को “राजनीतिक दबाव के साधन” के रूप में इस्तेमाल करने का विरोध करता है। ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने समिट के अंत में ट्रंप की धमकी पर टिप्पणी करते हुए कहा, “दुनिया बदल चुकी है। हमें अब सम्राट की जरूरत नहीं है।”

संभावित प्रभाव

ट्रंप की टैरिफ नीति से वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल मच सकती है। भारत जैसे देश, जो अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करते हैं, पर इसका आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है। इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर हो सकता है। साथ ही, यह नीति ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग को और मजबूत करने के लिए प्रेरित कर सकती है, क्योंकि वे वैकल्पिक व्यापार और भुगतान प्रणालियों की तलाश कर सकते हैं।

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