सवर्ण महासंघ फाउंडेशन ऑफ इंडिया प्रेस विज्ञप्ति।

जमशेदपुर: भारतीय फलक पर सवर्ण समाज की हालात दिन पर दिन बदतर होती जा रही हैं। हालात चिंतन की सीमा से आगे बढ़ कर चिंता की स्थिति में पहुंच गया है। 140 करोड़ की आबादी में भले ही कोई ये स्वीकार करने को तैयार नहीं हो पर सच्चाई हैं कि सवर्ण समाज की स्थिति राजनीतिक एवं संवैधानिक रूप से दोयम दर्जे की नागरिक से ज्यादा कुछ भी इस देश में नहीं हैं।

एक लोकतांत्रिक देश में यह सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं कि सभी वर्गों को प्रत्यक्ष राजनीतिक भागेदारी समान रूप से प्राप्त हो। किंतु सवर्ण समाज इस मोर्चे पर उपेक्षित हैं।सवर्ण समाज के अतिरिक्त सभी वर्गों को ये सम्मान सामान रूप से प्राप्त है। चाहे ओबीसी, एससी,एसटी,अथवा धर्म और भाषा क्षेत्र के नाम पर माइनॉरिटी समाज ही क्यों न हो। पर सवर्ण समाज को सभी पार्टियों ने अछूत बना कर रखा हैं।ये बातें सवर्ण महासंघ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डी डी त्रिपाठी ने जमशेदपुर में प्रेस से बात चित करते हुए कहा।

त्रिपाठी ने कहा कि यह विषय सिर्फ राजनीतिक भागीदारी तक ही सीमित नहीं है। संवैधानिक रूप से भी सवर्ण आयोग का नहीं होना सवर्णों की हितों की रक्षा में बाधक हैं।

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त्रिपाठी ने मीडिया के समक्ष 2013 के एक सरकारी आंकड़े को रखते हुए बताया कि सवर्णों की वास्तविक स्थिति इस देश में यह हैं कि
49 फीसदी सवर्ण समाज के बच्चे गरीबी के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। 45 फीसदी आबादी के पास रहने के लिए अपना पक्का मकान नहीं हैं।
36 फीसदी सवर्ण आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन को मजबूर हैं।
90 फीसदी सवर्ण युवा जो गांवों में रहते हैं, उनके पास स्नातक तक की डिग्री नहीं होती।
45 फीसदी सवर्ण पलायन को मजबूर हैं।
65 फीसदी सवर्ण रोजगार के लिए घर छोड़ने को मजबूर हैं।
55 फीसदी सवर्णों के पास 1 एकड़ से भी कम जमीन हैं।

वैसे में साजिशन सवर्ण समाज का नेतृत्व उन्हें मुगालते में रख कर उन्हें संगठन हीन बनाने का सबसे बड़ा दोषी है।उन्हें कुंभ करनी नींद से जागना होगा।हमारे समक्ष आज राजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने की चुनौती हर मोर्चे पर हैं।
सवर्ण महासंघ फाउंडेशन आज एक वैचारिक लड़ाई सत्ता और राजनीतिक सांगठनिक व्यवस्था से लड़ने को विवश हैं। त्रिपाठी ने कहा कि देश की वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में वोट एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पर जिसे हम अब तक सौभाग्य समझकर राष्ट्रीय हित में वोट करते आए वह धीरे धीरे हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न बनकर सामने खड़ा हैं।हम कभी वोट बैंक वाली धरना के साथ खड़ा नहीं हुए। पर ये हमारी सोच ही हमें अंदर ही अंदर घुन की तरह चाटती रही। सच्चाई यही है कि एक राजनीतिक पार्टी रूपी मां के पांच बच्चों में चार के लिए एससी, एसटी, ओबीसी, माइनॉरिटी को ये मां दूध पिलाती हैं। पर पांचवें पुत्र सवर्ण को दुत्कारती हैं।पर अब पानी सर से ऊपर उठ चुका हैं।वैसे में हम अब संगठित रूप में राजनीतिक भागेदारी पार्टीगत सवर्ण मोर्चा और संस्थागत रूप से सवर्ण आयोग के लिए कोई भी लड़ाई लड़ने को उद्दत हैं। इसके लिए पार्टी रूपी मां का वहिष्कार और प्रतिकार के लिए विवश होना पड़ा तो हम वो भी करेंगे।
यदि पार्टियां अपने सांगठनिक व्यवस्था में सवर्ण मोर्चा का गठन नहीं करती तो हम खुलकर उसका विरोध करेंगे और यदि सत्ता हमारी सवर्ण आयोग की मांग को स्वीकार नहीं करती तो वो भी परिणाम भुगतने की लिए तैयार रहे।
डी डी त्रिपाठी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
9334232454

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