शिक्षक मोहम्मद सलाउद्दीन पर हिंदू छात्रों को उर्दू पढ़ाने और भगवान पर सवाल उठाने का आरोप, BSA ने किया सस्पेंड

बिजनौर : उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के हरवंशपुर धारम गांव के सरकारी कंपोजिट विद्यालय में सहायक शिक्षक मोहम्मद सलाउद्दीन के खिलाफ गंभीर आरोपों के बाद तत्काल निलंबन की कार्रवाई की गई है। छात्रों ने आरोप लगाया कि सलाउद्दीन हिंदू छात्रों को जबरन उर्दू पढ़ाने के लिए मजबूर करता था और मना करने पर उनकी मुस्लिम छात्रों से पिटाई करवाता था। इसके अलावा, उसने मंदिरों और हिंदू देवी-देवताओं के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए अपमानजनक टिप्पणियां कीं।

वायरल वीडियो ने खोली पोल

मामला तब सामने आया जब एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें छात्रों ने खुलासा किया कि सलाउद्दीन उर्दू पढ़ने से इनकार करने वाले हिंदू छात्रों को धमकाता और मुस्लिम छात्रों से उनकी पिटाई करवाता था। वीडियो में छात्रों ने यह भी बताया कि शिक्षक कहता था, “तुम्हारा भगवान नहीं होता, मंदिर और भगवान कुछ नहीं, किसी ने भगवान को देखा है क्या?” इस वीडियो ने स्थानीय हिंदू संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया, जिन्होंने शिक्षक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।

BSA की कार्रवाई

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) योगेंद्र कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खंड शिक्षा अधिकारी इंद्रपाल सिंह को जांच के आदेश दिए। जांच में बच्चों और अभिभावकों के बयानों के आधार पर आरोप सही पाए गए। इसके बाद सलाउद्दीन को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया और उसे उच्च प्राथमिक विद्यालय जहानाबाद खोबड़ा से संबद्ध किया गया। BSA ने कहा, “धर्म के नाम पर स्कूलों में भेदभाव असहनीय है। शिक्षा व्यवस्था में ऐसा आचरण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

उर्दू शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष रिजवान पक्ष

मामले पर सलाउद्दीन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, उर्दू शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष रिजवान अहमद ने कहा, “उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी राजकीय भाषा है। इसे पढ़ाने में कोई गलत बात नहीं। निलंबन से पहले शिक्षक का पक्ष सुना जाना चाहिए था।” उन्होंने इस मामले में विभागीय अधिकारियों से बात करने की बात कही।

पहले भी उर्दू को लेकर विवाद

बिजनौर में यह पहला मामला नहीं है। जून 2025 में नजीबाबाद के प्राथमिक विद्यालय साहनपुर द्वितीय में स्कूल का नाम उर्दू में लिखने पर प्रधानाध्यापिका रफत खातून को निलंबित किया गया था। उस समय भी हिंदू संगठनों ने इसे “शिक्षा का इस्लामीकरण” बताकर विरोध किया था।

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