पुरी, ओडिशा: श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर शुरू होने वाला अनवसर उत्सव भक्तों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की स्नान यात्रा के बाद 15 दिनों की “लीलात्मक बीमारी” की परंपरा निभाई जाती है, जो भक्तों को भगवान की मानवीय लीलाओं से जोड़ती है। यह उत्सव 24 जून 2025 को स्नान यात्रा के साथ शुरू हुआ और 9 जुलाई को नवयौवन दर्शन के साथ समाप्त होगा।
स्नान यात्रा और अनवसर काल
ज्येष्ठ पूर्णिमा (24 जून 2025) को आयोजित स्नान यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्नान मंडप में लाया गया, जहां 108 कलशों से उनका पवित्र अभिषेक किया गया। मान्यता है कि इस महाभिषेक के बाद भगवान को सर्दी-जुकाम या बुखार हो जाता है, जिसके चलते वे 15 दिनों के लिए “बीमार” पड़ते हैं। इस अवधि को “अनवसर काल” कहा जाता है, जिसमें भगवान आम भक्तों के दर्शन से ओझल रहते हैं। उन्हें मंदिर के “नृसिंह चिकित्सालय” में रखा जाता है, जहां वैद्य औषधीय काढ़े और विशेष देखभाल के साथ उनकी सेवा करते हैं।
अनवसर के दौरान मंदिर की गतिविधियां
इन 15 दिनों में भक्तों को भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन नहीं मिलते, लेकिन मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान निर्बाध जारी रहते हैं। भगवान के प्रतिनिधि के रूप में “पट्टचित्र” (पारंपरिक चित्र) के दर्शन भक्तों को कराए जाते हैं। पुजारी और सेवक भगवान की विशेष देखभाल करते हैं, जो इस परंपरा को और भी जीवंत बनाता है। यह प्रथा भगवान की मानवीय लीलाओं को दर्शाती है, जो भक्तों को यह संदेश देती है कि भगवान भी उनके साथ हर भावना में जुड़े हैं।
नवयौवन दर्शन और रथ यात्रा की तैयारी
अनवसर काल के समापन पर 9 जुलाई 2025 को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा “नवयौवन” रूप में भक्तों को दर्शन देंगे। यह नवजौवन दर्शन भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। इसके कुछ ही दिनों बाद 11 जुलाई 2025 को विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का आयोजन होगा, जिसमें लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचकर भगवान के रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे। रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं, और मंदिर प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
अनवसर उत्सव भगवान जगन्नाथ की लीलाओं का एक अनूठा पहलू है, जो भक्तों को उनके प्रति श्रद्धा और प्रेम से जोड़ता है। यह परंपरा दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों के साथ हर रूप में—चाहे उत्सव हो या “लीलात्मक बीमारी”—जुड़े रहते हैं। पुरी के इस पवित्र उत्सव का इंतजार देश-विदेश के भक्तों को हर साल रहता है। #Live24indianews
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