नई दिल्ली : जापान ने एक ऐसा नकली खून बनाया है, जो हर ब्लड ग्रुप वाले को चढ़ सकता है। यह बिना फ्रिज के दो साल तक सुरक्षित रहता है और युद्ध, हादसों या आपदा में जान बचा सकता है। यह खोज 2030 तक मेडिकल क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।
आर्टिफिशियल ब्लड क्या है?
जापान के नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हीरोमी सकाई ने ‘हीमोग्लोबिन वेसिकल्स’ (HbVs) नाम का नकली खून बनाया है। इसे इस तरह तैयार करते हैं:
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हीमोग्लोबिन का इस्तेमाल: पुराने या एक्सपायर डोनर खून से हीमोग्लोबिन निकाला जाता है।
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छोटे सेल्स बनाना: इसे तेल जैसी परत में लपेटकर 250 नैनोमीटर के छोटे सेल्स बनाए जाते हैं, जो नसों में आसानी से जा सकते हैं।
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बैंगनी रंग: यह खून बैंगनी होता है, क्योंकि यह शरीर में जाने पर ही ऑक्सीजन लेता है।
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हर ब्लड ग्रुप के लिए: इसमें ब्लड ग्रुप मार्कर नहीं होते, इसलिए इसे किसी को भी दिया जा सकता है।
यह खून वायरस-मुक्त है और ऑक्सीजन को शरीर में पहुंचाता है।
फायदे
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हर ब्लड ग्रुप में काम: इसे किसी भी मरीज को दे सकते हैं, चाहे उसका ब्लड ग्रुप कुछ भी हो।
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दो साल तक सुरक्षित: बिना फ्रिज के दो साल तक रखा जा सकता है, जबकि असली खून 42 दिन में खराब हो जाता है।
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संक्रमण का डर नहीं: यह वायरस-मुक्त है, जिससे बीमारी का खतरा नहीं।
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आपातकाल में उपयोगी: युद्ध, हादसे, या गांवों में जहां खून नहीं मिलता, वहां यह जान बचा सकता है।
जानवरों और इंसानों पर टेस्ट
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चूहों पर टेस्ट: चूहों के 90% खून को इस नकली खून से बदला गया। उनका ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन स्तर सामान्य रहे। दो हफ्ते तक डोज देने पर कोई नुकसान नहीं हुआ।
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इंसानों पर टेस्ट: 2020 में 12 लोगों पर 10ml, 50ml और 100ml की डोज टेस्ट की गई। हल्का बुखार या बेचैनी हुई, जो ठीक हो गई। 100ml डोज 8-9 घंटे तक काम करती रही।
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2025 के टेस्ट: अब बड़े स्तर पर 100-400ml डोज के ट्रायल चल रहे हैं। 2030 तक यह अस्पतालों में इस्तेमाल हो सकता है।
जापान में खून की कमी
जापान में ब्लड डोनर कम हो रहे हैं, क्योंकि 30% आबादी 65 साल से ज्यादा उम्र की है। यह नकली खून अस्पतालों, सेना, और आपातकाल के लिए वरदान साबित हो सकता है।
वैश्विक असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया में हर साल 118 मिलियन ब्लड डोनेशन होते हैं, लेकिन गरीब देशों में खून की कमी से लोग मर जाते हैं। यह नकली खून भारत, अफ्रीका, और युद्धग्रस्त इलाकों में जिंदगियां बचा सकता है। अमेरिका और ब्रिटेन भी नकली खून पर काम कर रहे हैं, लेकिन जापान की तकनीक अपनी लंबी शेल्फ लाइफ और हर ब्लड ग्रुप में काम करने की खासियत के कारण आगे है।
चुनौतियां
बड़े पैमाने पर बनाना और कम कीमत में उपलब्ध कराना अभी चुनौती है। यह आपातकाल में खून का पूरक होगा, पूरी तरह रिप्लेसमेंट नहीं।
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