नई दिल्ली: आज देशभर में निर्जला एकादशी का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, जिसमें भक्त बिना जल ग्रहण किए उपवास करते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी की कथा महाभारत काल से जुड़ी है और इसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है।
निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व पूछा। श्रीकृष्ण ने उन्हें व्यासजी से यह कथा सुनने की सलाह दी। व्यासजी ने बताया कि पांडवों में भीमसेन को छोड़कर सभी एकादशी का व्रत करते थे। युधिष्ठिर, कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल, और सहदेव नियमित रूप से व्रत रखते थे और भीमसेन से भी ऐसा करने को कहते थे। लेकिन भीमसेन ने कहा, “मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की अग्नि जलती है, जो भूख को असहनीय बनाती है। मैं एक बार भोजन के बिना भी नहीं रह सकता, फिर बिना जल के कैसे रहूंगा?”
व्यासजी ने भीम को समझाया कि यदि स्वर्ग की प्राप्ति और नरक से मुक्ति चाहिए, तो दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करना होगा। भीम की व्यथा सुनकर व्यासजी ने कहा, “ज्येष्ठ मास में सूर्य जब वृषभ या मिथुन राशि में हो, उस समय की एकादशी को निर्जल व्रत करो।” उन्होंने बताया कि इस व्रत में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक जल का त्याग करना होता है। केवल आचमन या कुल्ला के लिए जल लिया जा सकता है। द्वादशी को स्नान, पूजा, और ब्राह्मणों को दान देकर भोजन करना चाहिए।
भीमसेन ने शुरू किया व्रत
व्यासजी ने कहा कि इस एक व्रत से सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। भगवान केशव ने स्वयं कहा था कि जो मनुष्य एकादशी को निराहार रहता है, वह पापमुक्त हो जाता है। यह सुनकर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत शुरू किया, जिसके बाद इसे ‘पांडव-द्वादशी’ भी कहा जाने लगा। इस व्रत से भीम को उनके पापों से मुक्ति मिली और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हुई।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। मान्यता है कि इस व्रत से मेरु पर्वत के समान पाप भी भस्म हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि इस दिन किया गया स्नान, दान, जप, और होम अक्षय फल देता है। जो इस व्रत को करता है, वह ब्रह्म हत्या, चोरी, और गुरु अपमान जैसे महापापों से भी मुक्त हो जाता है।
व्रत के नियम और दान
इस दिन भक्त सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। संकल्प लेते हैं कि वे भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए निराहार रहेंगे। जलमयी धेनु, गाय, अन्न, वस्त्र, शय्या, छाता, और जूते का दान करना शुभ माना जाता है। ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन करने से विशेष पुण्य मिलता है। जो इस कथा को श्रद्धा से सुनता या सुनाता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
वैष्णव पद की प्राप्ति
व्यासजी ने बताया कि इस व्रत से मनुष्य वैष्णव पद को प्राप्त करता है। मृत्यु के समय यमदूत नहीं, बल्कि विष्णुदूत उसे भगवान के धाम ले जाते हैं। यह व्रत सौ पीढ़ियों को तारने वाला माना जाता है। निर्जला एकादशी का पर्व भक्ति, संयम, और दान का प्रतीक है, जो भक्तों को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है।
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