नई दिल्ली/इस्लामाबाद, जून 2025
भारत द्वारा चेनाब नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित किए जाने के बाद पाकिस्तान गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। खरीफ फसल के मौसम की शुरुआत से पहले ही झेलम पर मंगला और सिंधु पर तरबेला जैसे प्रमुख बांधों में जल भंडारण स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है। पाकिस्तान का सिंचाई तंत्र और कृषि उत्पादन मुख्य रूप से सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है, और पानी की इस अचानक हुई कमी ने संकट को और गहरा कर दिया है।
भारत ने यह कदम कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद उठाया है, जिसके बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध और तनावपूर्ण हो गए हैं। भारत ने न केवल जल प्रवाह को नियंत्रित किया है बल्कि सिंधु जल संधि (IWT) के तहत पाकिस्तान को दिए जाने वाले जल प्रवाह संबंधी डेटा साझा करना भी बंद कर दिया है।
पाकिस्तान के सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण (IRSA) के अनुसार, मंगला और तरबेला बांधों में वर्तमान भंडारण क्षमता क्रमशः 50% और उससे भी कम पर आ चुकी है। IRSA ने चेतावनी दी है कि पानी की आपूर्ति में 21% तक की कमी आ सकती है, जिससे पंजाब और सिंध प्रांतों में खरीफ फसलों की बुवाई प्रभावित होगी। IRSA ने जलाशय प्रबंधन एजेंसियों को पानी का विवेकपूर्ण उपयोग करने की सख्त सलाह दी है।
भारत के पास सिंधु जल संधि के तहत पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चेनाब – पर सीमित नियंत्रण है, लेकिन उसे 3.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) तक जल संग्रह की अनुमति है। हालांकि भारत अब तक इस अधिकार का पूर्ण उपयोग नहीं करता रहा, लेकिन हालिया घटनाक्रम यह संकेत दे रहे हैं कि अब भारत अपनी रणनीति बदल रहा है और इन अधिकारों का अधिक प्रभावी उपयोग करने की ओर बढ़ रहा है।
इस संकट को वैश्विक मंच पर उठाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में ताजिकिस्तान के दुशांबे में एक सम्मेलन में सिंधु जल संधि के भविष्य पर चिंता जताई। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया कि भारत द्वारा जल प्रवाह को रोकना न केवल एकतरफा निर्णय है, बल्कि यह पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था और लाखों किसानों की जीविका पर सीधा असर डाल सकता है।
जल विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून के आगमन तक स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है, लेकिन तब तक पाकिस्तान की खरीफ फसलों के लिए जरूरी बुवाई का समय निकल सकता है। इसके साथ ही भारत द्वारा जल प्रवाह का डेटा साझा न किए जाने से बाढ़ प्रबंधन और जल योजना बनाना भी पाकिस्तान के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है।
कुल मिलाकर, जल विवाद भारत-पाक संबंधों में एक और तनावपूर्ण अध्याय जोड़ता दिखाई दे रहा है, जहां जल को अब रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल
किया जा रहा है।