न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ली शपथ: नकदी विवाद के बीच न्यायिक कार्य से दूर

लखनऊ,उत्तर प्रदेश:  न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। यह शपथ ग्रहण दिल्ली उच्च न्यायालय से उनके स्थानांतरण के कुछ दिनों बाद हुआ, जो उनके आधिकारिक आवास से कथित नकदी बरामदगी के विवाद के बाद हुआ था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को उन्हें कोई भी न्यायिक कार्य सौंपने से मना किया गया है। यह निर्णय पिछले सप्ताह 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया गया था।

लखनऊ पीठ में जनहित याचिका ने बढ़ाया विवाद

2 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश से न्यायमूर्ति वर्मा को शपथ दिलाने से रोकने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि नकदी विवाद के चलते उनकी नियुक्ति संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकती है। हालांकि, यह याचिका खारिज हो गई और शपथ ग्रहण समारोह निर्धारित समय पर संपन्न हुआ।

दिल्ली से इलाहाबाद तक का सफर और जांच का साया

न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण तब हुआ जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च को आग लगने के बाद वहां से भारी मात्रा में अधजली नकदी बरामद होने की खबरें सामने आईं। इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है। न्यायमूर्ति वर्मा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनके परिवार को इस नकदी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने तक उन्हें न्यायिक कार्यों से दूर रखने का फैसला किया।

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न्यायिक पारदर्शिता पर उठे सवाल

इस घटनाक्रम ने न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने 30 न्यायाधीशों के संपत्ति विवरण सार्वजनिक करने का फैसला लिया है, जिसे इस विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी उनके शपथ ग्रहण का बहिष्कार किया था, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है। फिलहाल, जांच रिपोर्ट आने तक न्यायमूर्ति वर्मा के भविष्य पर अनिश्चितता बनी हुई है।

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